कानाताल उत्तराखंड (Kanatal Uttarakhand) में टिहरी गढ़वाल जिले में मसूरी से चंबा जाने वाले मार्ग पर स्थित है। यह एक छोटा सा गाँव है। यह मसूरी से मात्र 38 किलोमीटर की दूरी पर है। कानाताल भीड़ भाड़ से दूर, प्रकृति के मनमोहक नजारों से भरा हुआ बहुत ही सुन्दर प्लेस है। यह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इतना ही नहीं यहाँ से बद्रीनाथ पर्वतमाला भी साफ साफ दिखाई देती है।
खुशनुमा मौसम, ताजा हवा, चारों तरफ फैली हरियाली और पहाड़ों के अद्भुत नज़ारों के बीच छुट्टियाँ बिताने के लिए कानाताल एक अच्छी जगह है। यह जगह प्रकृति दर्शन, कैम्पिंग, एडवेंचर का आनंद लेने के लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है। यदि आप कम भीड़ भाड़ और शांति जैसी जगहों पर जाने के शौकीन हैं, तो आपको कानाताल का ट्रिप जरूर प्लान करना चाहिए। कानाताल की पूरी जानकारी के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
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कानाताल से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पॉइंट्स (Some Important Points Related to Kanatal)
गांव का नाम | कानाताल |
जिले का नाम | टिहरी गढ़वाल |
राज्य का नाम | उत्तराखंड |
बोली जाने वाली भाषाएं | कुमाउनी, गढ़वाली, हिंदी |
किस लिए फेमस है | प्राकृतिक नजारों के लिए प्रसिद्ध है। |
समुद्र तल से ऊंचाई | 8,500 फीट |
तापमान (गर्मियों में) | 10 से 20 डिग्री |
तापमान (सर्दियों में) | 3 से -10 डिग्री |
कानाताल का इतिहास (History of Kanatal Uttarakhand in Hindi)
ऐसा माना जाता है कि कानाताल जिस जगह पर बसा हुआ है, पुराने जमाने में वहां एक झील हुआ करती थी। झील के सूखने के बाद वहां एक गाँव बसा, जिसका नाम भी झील के नाम पर ही कानाताल पड़ गया। हिमालय के दक्षिण में स्थित इस जगह के बारे में कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा जी ने यहीं पर तपस्या की थी। इस कारण यह जगह पवित्र है। यही वजह है कि यह प्लेस ऋषि मुनियों की पहली पसंद रहा है। वे यहाँ पर रहते थे, तपस्या करते थे।
टिहरी नगर की स्थापना सुदर्शन शाह नामक शासक ने की थी। उनके बाद उनके ही वंश के शासक प्रताप शाह, कीर्ति शाह, और नरेन्द्र शाह ने कानाताल पर शासन किया था। इस वंश ने 1815 से लेकर 1949 तक शासन किया। यहाँ के स्थानीय निवासियों ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भी हिस्सा लिया था। वहीं 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद यहाँ के नागरिको ने भारत में मिलने के लिए भी आन्दोलन किया था। पहले इस क्षेत्र को उत्तर प्रदेश में शामिल किया गया था। लेकिन 1 नवम्बर सन 2000 को उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद इस क्षेत्र को उत्तराखंड में शामिल कर लिया गया।
संस्कृति और रहन सहन (Culture and Lifestyle in Hindi)
कानाताल एक छोटा सा पहाड़ी गाँव है। पहाड़ी संस्कृति वाले इस गाँव में गड़वाली संस्कृति देखने को मिलती है। यहां के ज्यादातर निवासी हिन्दू धर्म को मानते हैं। यहाँ महिलाएं भी खेतों में काम करने जाती हैं। साथ ही जंगलों में घास काटने, लड़कियां काटने और वन से औषधि इकट्ठा करने भी जाती हैं।
कानाताल में गढ़वाली और हिंदी भाषा बोली जाती हैं। यहाँ का लोक संगीत, गीत और नृत्य के कई प्रकार हैं, जिसमें से कुछ प्रसिद्ध नृत्य यूनेस्को की विश्व धरोहर में भी शामिल हैं। यहाँ कई लोक नृत्य प्रचलित हैं, जो अलग अलग ओकेशन्स पर किये जाते हैं। यहाँ के प्रचलित लोकगीत हंसोडा, जात्रा, बंजारा, बोछाड़ो, सिपैया आदि हैं।
कानाताल की पारंपरिक वेशभूषा (Traditional Costumes of Kanatal)
यहाँ की महिलाओं का पारंपरिक पहनावा घाघरा और आंगडी है। साथ ही यह महिलाएं अपने सिर पर कपड़ा बांधती हैं। यहाँ की महिलाएं कई तरह के आभूषण पहनती हैं, जिसमें नथ और बिछिया की पहचान विश्व भर में है। यहाँ की आदिवासी महिलाएं गले में सिक्कों की माला पहनती हैं। इसके अलावा यहां के पुरुष चूड़ीदार पजामा और कुर्ता पहनते हैं। और सिर पर टोपी या कभी कभी पगड़ी और कोट भी पहनते हैं।
खानपान (Kanatal Food in Hindi)
कानाताल हिमालयन रेंज के दक्षिणी ढलान पर बसा हुआ है। इस क्षेत्र का अपना अलग ही पारंपरिक भोजन है, जो काफी सेहतमंद और हेल्दी होता है। यहाँ का मुख्य भोजन बाजरे की रोटी और साग है। साथ ही यहाँ कई तरह की विशेष दालें भी मिलती हैं।
कनाताल और आस पास के क्षेत्रों में मिलने वाली दालों की एक अलग ही किस्म होती है, जिसमें राजमा, हिमायन अरहर, पहाड़ी उड़द और रंगबिरंगी राजमा जैसी दालें हैं। इतना ही नहीं यहाँ आपको बाजरे की भी कई वैरायटी देखने को मिलती है, जैसे – मोती बाजरा, झंगोरा बजरा, कोंदरा बाजरा या मंडुआ जिसे कोदो बाजरा भी कहते हैं।
यहाँ आपको कई सारी यूनिक रेसिपी मिल सकती हैं, जो कहीं और नहीं मिलेंगी। कुछ फेमस डिशों के नाम हैं, जिन्हें आप जरूर टेस्ट करें, जैसे –
भांग के बीजों की चटनी –
गड़वाल के पहाड़ी क्षेत्रो में भांग के बीजो की चटनी बहुत फेमस है। यह नशीली नहीं होती। इसे कुछ खास पहाड़ी मसालों के साथ पत्थर पर पीसकर बनाया जाता है।
पालक कंडाली –
बाजरे की रोटी के साथ परोसी जाने वाली यह सब्जी पालक के साथ कंडाली और जखिया के बीज को मिलाकर बनाया जाता है।
रस भट्ट –
इस रेसिपी को यहाँ के लोग ठण्ड वाले दिनों में ज्यादा बनाते हैं। इसे आप सूप चावल भी कह सकते हैं। यह रेसिपी कई सारी दालो को मिक्स करके बनायी जाती है। जिसमे पहाड़ी राजमा, काली सोया, पहाड़ी उड़द, छोटा काला चना और गेहेट को रात भर भिगोकर सुबह उबाला जाता है।
ठीक प्रकार से दालो के गल जाने के बाद कपड़े से छानकर देशी घी, हिंग, झम्मुआ और झुंगर जैसे स्थानीय मसालों को मिलाकर रस तैयार किया जाता है। इस रस को चावल के साथ परोसा जाता है।
कानाताल के त्यौहार और नृत्य (Festivals and Dances of Kanatal)
कानाताल में कई त्यौहारों को मनाया जाता है, जैसे – बसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, दिवाली, गंगा दशहरा आदि। इसके अलावा यह अपने लोक नृत्यों के जरिये अपनी संस्कृति को भी पूरी तरह से जीते हैं। यहाँ के लोक नृत्यों में फेमस है छोरिया नृत्य, पांडव नृत्य, भोटिया नृत्य आदि। यदि आप कानाताल जाते हैं, तो यहाँ के त्यौहार और नृत्य को जरूर देखें और उनका मजा लें।
कानाताल घूमने का सबसे सही समय (Best Time to Visit Kanatal)
वैसे तो कनाताल का मौसम सालभर ही अच्छा रहता है, पर सर्दियों के मौसम में दिसम्बर से फ़रवरी तक यहाँ बर्फ़बारी का आनंद लिया जा सकता है। उस समय कानाताल की खूबसूरती और भी शानदार हो जाती है, क्योकि खुशनुमा मौसम में बर्फिले पहाड़ों पर ट्रेकिंग और बर्फ के गोलों से खेलने का अपना ही मजा होता है।
कानाताल में घूमने लायक जगह (Places to Visit in Kanatal)
1 ) कोडिया जंगल (Kodia Jungle) –
कल कल बहती नदी और हरे भरे पहाड़ों के नजारो वाला कोडिया जंगल कनाताल का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है। कोडिया जंगल की हरियाली, शांति, शुद्ध हवा, दिलकश नजारे प्रर्यटको को खूब भाते हैं। कोडिया के इन जंगलो में ट्रेकिंग और जंगल सफारी का अनुभव बहुत ही बेतरीन हो सकता है, क्योकि इन जंगलो में कई सारे जंगली पशु पक्षी घूमते दिखाई दे सकते हैं। कोडिया जंगल में विश्व विख्यात कस्तूरी मृग, जंगली सूअर, घोरल और कई सारे पक्षी पाए जाते हैं।
2) सेम मुखेम कालिया नागराज मंदिर (Sem Mukhem Kaliya Nagraj Temple) –
भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर समुद्र तल से 7000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर में नागराज की पत्थर की मूर्ति है। इस मंदिर के बारे में कई बातें प्रचलित हैं, जिनमें इस स्थान को भगवान श्री कृष्ण का पसंदीदा स्थान बताया जाता है। कहा जाता है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण इस स्थान पर आये थे और इस स्थान की शांति और सुंदरता को देखकर श्री कृष्ण ने यहां के शासक के सामने यहां रहने की इच्छा जताई थी।
लेकिन यहाँ के शासक भगवान श्री कृष्ण को जानते नहीं थे, इसलिए उन्होंने रहने के लिए जमीन देने से मना कर दिया। इसके बाद द्वारका के समुद्र में डूब जाने के बाद भगवान श्री कृष्ण यहाँ नागराज के रूप में प्रकट हुए। इस मंदिर में जन्माष्टमी पर काफी धूम धाम रहती है। लोग दूर दूर से दर्शन करने आते हैं।
3) चंद्रबदनी मंदिर (Chandrabadni Temple) –
कानाताल के नजदीक चंद्रबदनी पर्वत पर माता चंद्रबदनी मंदिर हिंदू धर्म में विशेष आस्था का केंद्र है। यह भी 51 शक्तिपीठों में से एक है। लोक मान्यता के आधार पर इस स्थान पर माता सती का धड़ गिरा था। इसी कारण यह शक्तिपीठों में शामिल है। यह स्थान देवी के उपासकों के लिए विशेष महत्व रखता है। सफेद संगमरमर के फर्श वाले इस मंदिर में पत्थर पर उकेरे गए श्री यंत्र की पूजा होती है।
यहां नवरात्रि में विशेष यज्ञ होते हैं और चैत्र नवरात्रि में मेला भी लगता है, जिसमें कई देशी विदेशी पर्यटक आते हैं। समुद्र तल से 2777 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर देवदार और चीड़ के वृक्षों से घिरा है।
4) धनौल्टी (Dhanaulti) –
कानाताल से मात्र 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह बहुत ही सुंदर हिल्स स्टेशन है। चारो तरफ हरे भरे पहाड़, देवदार के ऊंचे ऊंचे पेड़ या शांत वातावरण धनौल्टी की पहचान हैं। धनौल्टी में दो इको पार्क धरा या अंबर है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर मजा लिया जा सकता है।
धनौल्टी में एडवेंचर पार्क है, जिसमें सभी आधुनिक एडवेंचर गतिविधियां शामिल हैं, जैसे – वेली क्रॉसिंग, माउंट क्लाइम्बिंग, पंजी जंपिंग, स्काई वॉक, रैपलिंग आदी का आनंद लिया जा सकता है। सुन्दर, शांत या मनमोहक सीनरी वाले धनौल्टी में पहाड़ियों पर बने आलू खेत भी आकर्षण का केंद्र हैं।
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5) टिहरी बांध (Tehri Dam) –
भागीरथी नदी पर बना यह बांध विश्व के सबसे ऊंचे बांधों में से 10वें स्थान पर है। यह समुद्र तल से 260 मीटर (855 फीट) की ऊंचाई पर है। आसपास मखमली हरियाली या ताजे पानी की झील है, जिसका साफ सुथरा पानी आंखों को लुभाता है। यहाँ पर बोटिंग का आनंद भी लिया जा सकता है।
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6) सुरकंडा देवी (Surkanda Devi) –
सुरकंडा देवी मंदिर हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाला स्थान है। सुरकंडा देवी का यह मंदिर हरी भरी पहाड़ी पर समुद्र तल से लगभग 2756 मीटर यानी 10000 फीट की ऊंचाई पर है। यहाँ पहुँचने के लिए रोपवे हैं। यह प्राचीन मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है, जो देवी को समर्पित है। लोक मान्यता के अनुसार यहाँ माता सती का सिर गिरा था। यहाँ गंगा दशहरे पर मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर दूर से लोग अपनी मन्नत पूरी करने आते हैं।
7) होम स्टे (Homestay) –
होम स्टे कानाताल जाने वाले पर्यटकों के लिए एक्साइटमेंट का विषय होता है। छोटे छोटे घर बहुत ही सुन्दर होते हैं। इन्हें एकदम ग्रामीण घरों की तरह मिट्टी, घास और लड़कियों से तैयार किया जाता है। अगर आप कानाताल में होम स्टे करते हैं, तो आप मेहमान नवाजी का लुत्फ उठा पाएंगे। खासतौर पर पर्यटकों की सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है। यहाँ पारंपरिक पहाड़ी खाना परोसा जाता है।
8) कैम्पिंग (Camping) –
कानाताल में कैम्पिंग का भी अपना मजा है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों, साफ पानी की कल कल बहती नदियों के किनारे जगह जगह आपको कैंप लगे दिख जाएंगे। ये कैंप भी पर्यटकों की सभी सुख सुविधाओं के अनुरूप ही होते हैं। अगर आप कैंप में रुकते हैं, तो प्रकृति को अपने और भी ज्यादा करीब पाएंगे। रात को खुले आसमान में टिमटिमाते तारे, ऊंची-ऊंची पहाड़ी, साफ पानी की नदियां, बदलते मौसम के नज़ारे, चिड और देवदार के ऊंचे ऊंचे पेड़, पहाड़ी बकरियों की उछल कूद मन को लुभाती है।
यहाँ आप अपने सभी तनावों को भूल जाते हैं। आपको एक नयी एनर्जी मिलती है। कैंपों के नजदीक ही वेली क्रॉसिंग, माउंट क्लाइम्बिंग, पंजी जंपिंग, स्काई वॉक, और रैपलिंग का रोमांचक अनुभव लिया जा सकता है।
कानाताल टूर पैकेज (Kanatal Tour Package) –
एक अनुमानित बजट है ये आपकी खर्च के हिसाब से बढ़ एवं घट सकता है।
Duration – 2 Days -1 Night
Pick-up and Drop – Delhi to Delhi
Starting Price – ₹ 5199/-
कैसे पहुंचे (How to Reach)
हवाई यात्रा (By Air) – कानाताल से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में है, जहाँ से कनाताल की दूरी 78 किलोमीटर है। दिल्ली से कनाताल की दूरी 300 किलोमीटर है। दिल्ली या देहरादून दोनों जगहों से बस, टैक्सी या कैब की मदद से कानाताल पहुंचा जा सकता है।
रेलयात्रा (By Rail) – कानाताल पहुंचने के लिए दो रेलवे स्टेशन हैं एक देहरादून है और दूसरा ऋषिकेश में है। ऋषिकेश से कनाताल की दूरी 80 किलोमीटर है। दोनो ही रेलवे स्टेशन से टैक्सी पकड़ने के लिए बस, टैक्सी आदि साधन मिल जाते हैं।
सड़क मार्ग (By Road) – कानाताल सड़क मार्ग से मसूरी, ऋषिकेश, देहरादून, दिल्ली से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, जहां से कानाताल पहुंचने के लिए बस, कैब, टैक्सी आसानी से मिल जाती है।
FAQs
Q.कानाताल क्यों प्रसिद्ध है?
A.कानाताल अपने प्राकृतिक नजारों और शांत जगह के कारण प्रसिद्ध है।
Q. कानाताल में देखने लायक क्या है?
A. कानाताल में घूमने के लिए ऊँचे ऊँचे पहाड़, नदिया और खूबसूरत जंगल हैं, जो आपको प्रकृति के बहुत पास ले जाता है।
Q. कानाताल घूमने के लिए कितने दिन चाहिए?
A. कानाताल घूमने के लिए कम से कम 3 दिन काफी है।
Q. कानाताल में बर्फ कब पड़ती है?
A. कानाताल में दिसंबर से फरवरी तक अच्छी बर्फ पड़ती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस आर्टिकल में हमने आपको कानाताल से जुड़ी सारी जानकारी दी है। इस आर्टिकल से आपको कानाताल के इतिहास, संस्कृति, खान पान, रहन सहन, त्यौहार और पारंपरिक पहनावे के बारे में पता चल गया होगा। आप यदि कानाताल का ट्रिप प्लान कर रहे हैं, तो आपको किस मौसम में जाना चाहिए और आप कहाँ कहाँ घूम सकते हैं उसकी जानकारी भी आपको इस आर्टिकल में मिल गई होगी।
आप कानाताल कैसे जाएं? यदि आपके मन में यह प्रश्न भी था, तो आपको इसका उत्तर भी हमने इस आर्टिकल में दे दिया है। आशा है कि आपके लिए कानाताल से जुड़ी सारी जानकारी Helpful रही होगी। यदि आपको हमारा आर्टिकल पसंद आया हो, तो आप इसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी शेयर करें,
Thanks!
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