आज हम छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बस्तर और वंहा रहने वाली जनजातियों से जुडी रोचक जानकारी के बारे में बतायंगे।
वैसे तो अक्सर छत्तीसगढ़ का नाम जैसे ही लेते है नक्सलवाद का जिक्र पहले होता है लेकिन यह राज्य उससे कई गुना ज्यादा खूबसूरत भी है।
बस्तर में न केवल देशी बल्कि हर साल विदेशी पर्यटकों कि संख्या में भी काफी वृद्धि हो रही है।बस्तर में कई जनजातीय रहती हैं जिनके अपने अलग-अलग परंपरा और रीति रिवाज है।
यदि आप जनजाति को बारीकी से समझना चाहते हैं तो पहले आपको प्रकृति व जंगलों में रहने वाले मनुष्य के समुदाय को बारीकी से समझना होगा।
जंगलो में पाई जाने वाली लगभग 90 % जनजातीय असभ्य व् हिंसक होती है। जिस प्रकार जंगली जानवर अपने इलाके की रक्षा के लिए अपनी जान तक दे सकता है वैसे ये जनजातीय भी अपने इलाके की रक्षा करती है
बस्तर में पाई जाने वाली जनजातियों से पहले आपको बस्तर इलाके के बारे में समझना होगा। बस्तर एक जिला है जो चार संस्कृतियों से घिरा हुआ है इसके चारों तरफ छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और महाराष्ट्र की सीमाएं लगती है।
माडिया जनजाति बस्तर के जंगलों में पाई जाने वाली जनजाति है जो पहाड़ी इलाकों व् जंगलों में निवास करती है। इस जनजाति को दो भागों में बांटा गया है 1. अबुझ माड़िया 2. दण्डामी माड़िया।
इन दोनों जनजातियों की संस्कृति आपस में मिलती जुलती है और यह दोनों ही जनजातियां बाहरी लोगों का अपने इलाके में आना पसंद नहीं करती.
जब भी कोई व्यक्ति इनके इलाके में प्रवेश करता है तो यह असहज महसूस करते हैं व् बाहरी व्यक्ति पर तीर कमान से हमला कर देते हैं. हमले के बाद इस जनजाति के लोग कर्कश ध्वनि के द्वारा अपनी ताकत का एहसास कराते हैं.
हलबा जनजाति छत्तीसगढ़ (बस्तर) में पाई जाने वाली एक विशाल जनजाति है इस जनजाति के लोग छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के इलाकों में निवास करते हैं। प्राचीन समय में यह जनजाति भी जंगलों में रहती थी।
लेकिन आज के समय में इस जनजाति के लोग गावो की तरफ भी पलायन कर रहे हैं। हलबा जनजाति 17 वीं शताब्दी में बस्तर राज्य के प्रमुख और सबसे प्रभावशाली जनजातीय समूहों में से एक थीं।
भतरा जनजाति प्राचीन काल में पूरे बस्तर जिले में फैली हुई थी इस जनजाति के लोग कला और नाटक प्रेमी होते थे। इन्हें पेंटिंग, नृत्य करना एवमं गाने शौक है।
इस जनजाति के लोग आज कल शहरों में रोजगार की लिए निवास करते हैं। प्राचीन समय में इस जनजाति के लोगो का प्रिय भोजन केकड़ा व् पक्षियों का मॉस था.
मुरिया जनजाति को बस्तर की मूल जनजाति कहा जाता है। इस जनजाति के लोगों को श्रृंगार करना व कलात्मक वस्तुएं बनाना पसंद है।
नृत्य के समय युवा पुरुष नर्तक अपनी कमर में पीतल अथवा लोहे की घंटियां बांधे रहते है व् साथ में छतरी और सिर पर आकर्षक सजावट कर नृत्य कर