अंडमान निकोबार भारत का एक ऐसा केंद्रशासित प्रदेश है जो न केवल रहस्यों से भरी हुयी है बल्कि पूरी दुनिया के लिए आश्चर्य बानी हुयी है। 

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इस द्वीप को जारवा, आंगे, सेंटलिस और सेम्पियन आदि प्रजाति का द्वीप माना जाता है।

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ये आदिवासी यहां के निवासी माने जाते हैं, जो सदियों पहले अफ्रीका से माइग्रेट होकर अंडमान पहुंचे। 

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अंडमान के निवासी मुख्यतः 'जार्वा' जनजाति से हैं। जिनकी संख्या  500 से भी कम हैं और ये बाहरी लोगों से बिल्कुल भी घुलते मिलते नहीं हैं। 

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ये जनजाति सरकार के द्वारा संरक्षित और यंहा पर सबसे ज्यादा बंगाली भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा यंहा पर हिंदी, तमिल, तेलगू और मलयालम भाषा बोलने वाले लोग हैं।

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अंडमान में कुल 572 आइलैंड है जिनमें 36 ही ऐसे जंहा बसने लायक या जाने लायक है।  

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निकोबार में जाने के लिए सिर्फ रिसर्च या सर्वे के लिए ही चुनिंदा लोगों को इजाजत मिलती है। टूरिस्ट के लिए भी यहां जाना बहुत मुश्किल है। 

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सबसे ज्यादा समुद्री कछुआ यही पर पाया जाता है। धरती का सबसे बड़ा कछुआ भी यहीं पाया जाता है। जो साइज में बहुत बड़े आकर के होते हैं। 

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धरती का सबसे छोटा कछुआ ओलिव राइडली भी अंडमान पहुंचकर अपना घर बनाता है।

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अंडमान में डेनिश कॉलोनियल रूल सन 1868 में खत्म हुआ था। यंहा ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि ब्रिटिशर्स ने इसे खरीद लिया था। 

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इसके बाद आइलैंड का पूरा अधिकार अंग्रेजों के हाथ में चला गया। अंडमान के दो आइलैंड्स के नाम ईस्ट इंडिया कंपनी के दो ऑफिसर्स के नाम पर रखा गए हैं। 

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ये आइलैंड हैं हेवलॉक और नील आइलैंड।

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